एक कहानी ( Inspired by a life story )
तुम ऐसे क्यों , वैसे क्यों नहीं?
जो हम ऐसे न हो वैसे होते
सोच हमारी यूं होती नहीं
माना अटपटी सी सोच है
जो सबकी सी लगती नहीं
जो डोर खींचे हैं सभी
पतंग हमारी क्यों उड़ती नहीं ?
बढ़ चले थे हम अकेले
नए रास्तों की खोज में
न हाथ ले, न साथ ले
इक मस्त दिल की मौज में
डगमगाए , लड़खडाए
गिर गिर कर हम फिर खड़े
न अस्त्र थे, न शस्त्र थे
सहस्त्र बार खुद से लड़े
फिर आंच आंच में ताप ताप कर
पग पग माप हम बढ़ चले
इक लक्ष ले , इक ध्यान ले
विजयी हुए हम मनचले
वक़्त की करवट को जान
नए रस्ते हम चल दिए
नई डोर में,नई सोच ले
मन मग्न हो हम रम लिए
जो हम ऐसे न हो वैसे होते
उमंग पा जाते भेड चाल में
पर सोच न होती इस खोज की
बंधते भीढ़ के जंजाल में
आज खुद पर हैरान हैं
किस डगर झर झर बह चले?
जो रुख बदलदे सोच का
फिर चिर शिखा पर चढ़ पड़ें
जो अहम् में लिप्त खुद को
हैं समझते बहुत बड़े
निशब्द करदें कुछ क्षणों में
गर आज हों हम फिर ख़ड़े
पर खोज ही अब लक्ष्य है
तो हम वैसे कैसे हो पाएंगे?
नवगति जहां ले चले
खुद को वहीं पाएंगे
Beautifully worded, my inner feelings which i felt, but could not find words to express are right here.. keep up the wonderful job.
ReplyDeleteSo relatable. Beautiful expression :)
ReplyDeleteBeautifully expressed. Keep up your good work.
ReplyDeleteVery beautiful wordings grouped ��
ReplyDeleteIncredible! Beautiful & deep emotions expressed so eloquently!! Looking forward to reading more from you ����
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